लेखनी कहानी -10-Feb-2022
2,नशे की ओर बढ़ते नन्हें कदम--एक लेख
बच्चों द्वारा बढ़ती अपराधों की संख्या के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं। हमारी शिकायत रहती है कि बच्चे नशा करते हैं फिर अपराध करते हैं, लेकिन हम कभी नहीं सोचते कि इन बच्चों को नशा मिलता कहां से है, इन्हें नशा दे कौन रहा है। आपको यकीन नहीं होगा पर कही न कहीं हम ही इसके जिम्मेदार हैं, जो दुकान पर बैठकर इन मासूम बच्चों को नशा बेंच रहे हैं।
जिम्मेदार नागरिक होने के नाते क्या कभी खुद हमने इसे रोकने की पहल की। कानून किशोर न्याय बालकों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम 2015 के अनुसार बच्चे को नशा बेचने पर (धारा 77) के अनुसार सात साल तक की सजा का प्रावधान है, फिर भी बच्चों को धड़ल्ले से नशा बेचा जा रहा है। आप शहर के किसी भी कोने में चले जाएं बच्चे को नशा आसानी से उपलब्ध होता है।
किसी भी व्यक्ति या बालक को नशा चढऩे के बाद उसके सोचने समझने की इच्छा शक्ति कम होती चली जाती है और दिमाग में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं। नशे के बाद लोगों को इसके कारण होने वाले हादसों और रिस्क का परिणाम क्या होगा इसका पता नहीं होता है। इसके साथ ही उसमें जोश बढ़ता जाता है। हो सकता है सामान्य हालत में व्यक्ति या बालक अपराध न करे।
अनुभूतियों और संवेदनाओं का केन्द्र मनुष्य का मस्तिष्क है। सुख-दुःख का, कष्ट-आनंद का, सुविधा और अभावों का अनुभव मस्तिष्क को ही होता है तथा मस्तिष्क ही प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलने के जोड़-तोड़ बिठाता हैं। कई व्यक्ति इन समस्याओं से घबरा कर अपना जीवन ही नष्ट कर डालते है, परन्तु अधिकांश व्यक्ति जीवन से पलायन करने के लिए कुछ ऐसे उपाय अपनाता है, जैसे शतुरमुर्ग आसन्न संकट को देखकर अपना सिर रेत में छुपा लेता है। इस तरह की पलायनवादी प्रवृतियों में मुख्य है मादक द्रव्यों की शरण में जाना। शराब, गांजा, भांग, चरस, अफीम, ताडी़ आदि नशे वास्तविक जीवन से पलायन करने की इसी मनोवृत्ति के परिचायक है। लोग इनकी शरण में या तो जीवन की समस्याओं से घबरा कर जाते है अथवा अपने संगी-साथियों को देखकर इन्हें अपना कर पहले से ही अपना मनोबल चौपट कर लेते है।
मादक द्रव्यों के प्रभाव से वह अपनी अनुभूतियों, संवेदनाओं तथा भावनाओं के साथ-साथ सामान्य समझ-बूझ और सोचने-विचारने की क्षमता भी खो देता है। मादक द्रव्य इतने उत्तेजक होते हैं कि सेवन करने वाले को तत्काल ही अपने आसपास की दुनिया से काट देते है और उसे विक्षिप्त कर देते है।
नशा केवल शराब की दुकान पर मिलने वाली चीज नहीं है, बल्कि यह पान की दुकानों, गुमठियों पर भी मिल रहा है। आप यकीन नहीं मानेंगे पर हम जिस दुकान से पान खरीदते हैं, उसी दुकान से आपका बच्चा सिगरेट, गुटखा, तम्बाकू आदि खरीदता है।
वक्त है सिटीजन का पुलिस बनने का, जहां आपकी एक सूचना कई बच्चों को नशे से दूर कर सकती है। आपकी यह जानकारी गोपनीय रखी जाएगी। आप अपना ही एक छोटा सा ऐरिया चुन लीजिए। इसके लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है। इस तरह यदि यह मुहिम फैल जाए तो पूरा शहर बच्चों के लिए नशा मुक्त हो जाएगा। इसके साथ ही नशे में बच्चों द्वारा किए जा रहे अपराध भी रुकेंगे।
एक बार बच्चा नशे की गिरफ्त में आ जाए तो उसकी लत छुड़ाने नशामुक्ति केंद्र की जरूरत होती है, ताकि बच्चे को नशे की गिरफ्त से बाहर निकाला जा सके। शहर में बच्चों के लिए सरकारी नशामुक्ति केंद्र नहीं होने से इन्हें नशे की गिरफ्त से निकालना मुश्किल होता है। ऐसे बच्चों की चाइल्ड लाइन काउंसलिंग तो करता है पर यह बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता, उसे लंबे समय तक उपचार की जरूरत होती है, जो नशामुक्ति केंद्र से ही संभव हो सकता है। केंद्र स्थापित होने से नशे की गिरफ्त में जो बच्चे हैं, उनका भविष्य सुधारना संभव हो पाएगा।
मादक द्रव्यों के बढ़ते हुए प्रचलन के लिए आधुनिक सभ्यताओं को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसमें व्यक्ति यांत्रिक जीवन व्यतीत करता हुआ भीड़ में इस कदर खो गया है कि उसे अपने परिवार के लोगों का भी ध्यान नहीं रहता है। नशा एक अभिशाप है, एक ऐसी बुराई जिससे इंसान का अनमोल जीवन मौत के आगोश में चला जाता है एवं उसका परिवार बिखर जाता है। व्यक्ति के नशे के आदि होने के कई कारण हो सकते हैं। यह कारण व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक हो सकते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य कारण अधोलिखित हैं।
1. माता-पिता की अति व्यस्तता बच्चों में अकेलापन भर देती है। माता-पिता के प्यार से वंचित होने पर वह नशा की ओर मुड़ जाता है। परिवार में कलह का वातावरण व्यक्ति को नशे की ओर ढकेल देता है।
2. मानसिक रूप से परेशान रहने के कारण व्यक्ति नशे की आदत डाल लेता है, यह मानसिक परेशानी पारिवारिक, आर्थिक एवं सामाजिक हो सकती है।
3.बेरोजगारी नशा की ओर उन्मुख होने का एक प्रमुख कारण है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। दिनभर घर में खाली एवं बेरोजगार बैठे रहने से व्यक्ति हीनभावना एवं ऊब का शिकार होता है एवं इस हीनभावना व ऊब को मिटाने के लिए वह नशे का सहारा लेने लगता है।
4.शारीरिक कमजोरी व पढ़ने में कमजोर होने के कारण बच्चे उस कमी को पूरा करने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं।
5.जो व्यक्ति तनाव और बच्चे अवसाद एवं मानसिक बीमारी से पीड़ित है वो नशे का आदि हो जाता है।
6.परिवार के व्यक्ति, दोस्त एवं अपने आदर्श व्यक्ति को नशा लेते देखकर युवा नशे का शिकार होते हैं।
7.अकेलापन नशे को निमंत्रित करता है।
8.लोग ये सोच कर नशा लेते हैं कि नशा तनाव को दूर करता है।
9.किसी दूसरे की दवा को स्वयं पर आजमाने से व्यक्ति नशे का आदि हो जाता है। चोट या दर्द की वजह से डॉक्टर दवा लिखता है, जिससे आराम मिलता है। जब भी चोट लगती है या दर्द होता है वो वह दवा बार-बार लेने लगता है जिससे वह नशे का आदि हो जाता है।
10.पुरानी दुखद घटनाओं को भूलने के लिए लोग नशे का सहारा लेते हैं।
11. बच्चों में अत्यंत भेदभाव करने पर वो हीनभावना से ग्रसित हो जाते है एवं विद्रोह स्वरूप नशे की ओर मुड़ जाते हैं।
12.पत्र-पत्रिकाओं एवं टेलीविजन पर तम्बाकू एवं शराब के विज्ञापनों से प्रभावित होकर बच्चे एवं युवा इनका प्रयोग शुरू
राष्ट्रीय स्तर पर नशा रोकने के उपाय :-
नशे से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारिवारिक एवं सामाजिक सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है। सिर्फ सरकार या नशामुक्ति संस्थाएं इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं। नशा रोकने में सबसे बड़ी समस्या है कि हम सिर्फ जागरूकता पर जोर देते है, उसकी रोकथाम के प्रयास कम करते हैं। जागरूकता सिर्फ बड़ों को नशे की लत से दूर करती है, जबकि रोकथाम बचपन में नशे की लत न लगे इसके लिए जरूरी है राष्ट्रीय स्तर पर चेतना। नशा को रोकने के लिए निम्न प्रयासों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
1. सामाजिक स्तर पर नशा रोकथाम कार्यक्रम बनना चाहिए।
2. नशा का व्यापक फैलाव समाज से संबंधित है अतः ऐसे समाजों को चिन्हित करके व्यापक जागरूकता अभियान चलना चाहिए।
3. स्वस्थ, सफल एवं सुरक्षित छात्र कैसे बनें इस थीम पर सभी विद्यालयों में नशा मुक्ति अभियान को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।
4. नशा रोकने के लिए कारगर रणनीति राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वित होनी चाहिए।
5. राष्ट्रीय युवा नशा मुक्ति आंदोलन महाविद्यालयीन स्तर पर पाठ्यक्रम में लागू होना चाहिए।
6. बच्चे नशे से दूर रहे ऐसे क्षेत्रों पर नशा रोकथाम केंद्रित होना चाहिए। इसके लिए तीन स्थानों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(1) विद्यालय (2) कॉलेज (3) कार्यक्षेत्र
7. नशे की रोकथाम वाली संस्थाओं एवं कानून एवं न्याय की संस्थाओं में आपसी समन्वय व सूचनाओं का आदान-प्रदान होना चाहिए।
8. नशे की हालत में गाड़ी चलने पर रोकथाम के लिए कड़े कानून का प्रावधान होना चाहिए।
9. नशे से सुरक्षित सड़क (addiction free road) कार्यक्रम चलाना चाहिए।
10. मादक दवाओं से जुड़े लोगों पर कठिन दंड का प्रावधान होना चाहिए।
11. आवासीय उपचार कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलना चाहिए।
12. विद्यालय एवं परिवार में बच्चों एवं युवाओं के नशे के संकेत पहचानने वाले कार्यक्रमों का आयोजन एवं प्रशिक्षण होने चाहिए।
13. नशा मुक्ति संस्कृति को बढ़ावा मिलना चाहिए।
बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं, इसलिये किसी परिवार, समाज और देश को उन्नति की ओर ले जाने के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों को नशे की लत न पड़ने दी जाये और जिन्हें यह लत लग गयी है, उनको इससे मुक्त कराया जाये।
राजीव रावत
Seema Priyadarshini sahay
12-Feb-2022 06:39 PM
बहुत अच्छी जानकारी है सर
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